कुम्भ मेला
कुम्भ मेला हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में एकत्र होते हैं और नदी में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति 12वें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है। 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। फिर 2019 में प्रयाग में अर्धकुम्भ मेले का आयोजन हुआ था।
रामनवमी मेला
रामनवमी मेले को हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या में मनाया जाता है। भगवान राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था। इसीलिये भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में रामनवमी का पर्व मनाया जाता है।
रामायण मेला
रामायण मेला, उत्तर प्रदेश में दो जगह चित्रकूट और अयोध्या में लगता है। रामायण मेले में अनेक साधु, संत, महात्मा, धर्मगुरु, देश-विदेश के रामकथा मर्मज्ञ तथा विद्धान भाग लेते हैं। रामायण मेले में रामलीला, प्रवचन तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।
रामायण मेला के आयोजन की शुरुआत डॉ॰ राममनोहर लोहिया ने सन् 1961 में की थी तथा उसी के तहत 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित किया था। फिर बाद में अयोध्या में इसकी शुरूआत 1982 में उस समय के मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने की थी जिसका उद्देश्य रामायण मेले को केन्द्र में रखकर अयोध्या का विकास करना था।
शाकंभरी देवी का मेला
शाकंभरी देवी का मेला सहारनपुर में आयोजित किया जाता है। शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है। मंदिर में भादवा सुदी अष्टमी को मेला आयोजित होता है। दोनों ही नवरात्रों में माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। दंत कथाओं और स्थानीय लोगों के मुताबिक मां शाकंभरी की कृपा से यहां चांदी की भूमि उत्पन्न हुई।
कैलाश मेला
यह मेला हर वर्ष सावन महीने के तीसरे सोमवार को आगरा में लगता है। इसका आयोजन बड़ी धूमधाम से आगरा के सिकंदरा क्षेत्र में यमुना के किनारे स्थित कैलाश मंदिर पर होता है। कैलाश मेला सावन महीने में भगवान शिव के सम्मान में लगाया जाता है।
देवीपाटन मेला
देवीपाटन मेला बलरामपुर में साल में दो बार चैत्र तथा शारदीय नवरात्र पर आयोजित किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध मंदिर को कई पौराणिक कथाओं के साथ सिद्धपीठ होने का गौरव प्राप्त है।
कलिंजर का मेला
कलिंजर का मेला बांदा जिले में स्थित कालिंजर दुर्ग में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। कालिंजर दुर्ग का सबसे प्रमुख उत्सव प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला पाँच दिवसीय कतकी मेला (जिसे कतिकी मेला भी कहते हैं) है। इसमें हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यह मेला चंदेल शासक परिमर्दिदेव (1165-1202 ई.) के समय आरम्भ हुआ था, जो आज तक लगता आ रहा है।
नौचंदी मेला
नौचन्दी मेला उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों मे से एक है। नौचन्दी मेला मेरठ में प्रति वर्ष लगता है। यह मेला मेरठ की शान है।यहां का ऐतिहासिक नौचंदी मेला हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। हजरत बाले मियां की दरगाह एवं नवचण्डी देवी (नौचन्दी देवी) का मंदिर एक दूसरे के निकट ही स्थित हैं। जहाँ मंदिर में भजन कीर्तन होते रहते हैं वहीं दरगाह पर कव्वाली आदि होती रहती है।
देवा शरीफ मेला
देवा शरीफ मेला बाराबंकी में लगता है। जो रब है वही राम है का संदेश देने वाले सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर कौमी एकता और सद्भाव का प्रतीक ऐतिहासिक देवा मेला का आयोजन होता है। देवा मेला को कार्तिक उर्स के नाम से भी जाना जाता है।
बटेश्वर मेला
बटेश्वर नाथ का नाम भारत के प्राचीन धार्मिक स्थलों में आता है। इस जगह का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है। बटेश्वर यमुना नदी के तट पर आगरा (उत्तर प्रदेश) से 70 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां हर साल एक बड़ा पशु मेला अक्टूबर और नवंबर के महीने में (प्रतिवर्ष कार्तिक मास) आयोजित किया जाता है। शिव का एक नाम पशुपति भी है, बटेश्वर का पशुमेला इसे सार्थक करता है।
बटेश्वर यमुना के तट पर स्थित 101 शिव मंदिरों के लिए जाना जाता है। बटेश्वर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मस्थान है। बटेश्वर का पशुओं का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है तथा इस मेले का आनन्द लेने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। यहां मेला तीन चरणों मे पूरा होता है, पहले चरण में ऊँट, घोड़े और गधों की बिक्री होती है, दूसरे चरण में गाय आदि अन्य पशुओं की तथा अंतिम चरण में सांस्कृतिक रंगा रंग कार्यक्रम होते हैं।
कम्पिल मेला
कम्पिल मेला एक जैन मेला है जो प्रत्येक वर्ष उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में आयोजित किया जाता है। यह मेला कम्पिल नामक स्थान से लिया जाता है जहाँ यह मनाया जाता है। कम्पिल एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है जिसका उल्लेख हमारे महाकाव्यों में मिलता है। इस स्थान को पहले कम्पिल्या के नाम से जाना जाता था और यह राजा द्रौपद की राजधानी थी।
सैयद सालार मेला
बहराइच जिले में प्रतिवर्ष सैयद सालार मेले का आयोजन किया जाता है। हजरत गाजी सैयद सालार मसूद एक महान संत थे, जो हिंदुओं एवं मुसलमानों में समान रूप से पूजनीय थे। इनकी दरगाह उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले मे स्थित है जहां प्रति वर्ष मेला लगता है, जिसको सैयद सालार मेला के नाम से जाना जाता है। किंवदंती है कि यहां पर स्थित तालाब में स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म एवं कुष्ठ रोगों से निजात मिल जाती है।
मकनपुर मेला
कानपुर के मकनपुर स्थित हजरत सैय्यद बदीउद्दीन जिंदाशाह मदार की दरगाह पर वसंत पंचमी के पर्व पर आयोजित होने वाले मेले के साथ पशु बाजार लगता है, जो लगभग एक माह से अधिक समय तक चलता है। गाय, बैल, भैंस के साथ बड़ी संख्या में घोड़े लेकर व्यापारी आते हैं।
खिचड़ी मेला
खिचड़ी मेला का आयोजन गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में किया जाता है। गोरखनाथ मंदिर और वहां का खिचड़ी पर्व, दोनों ही पूरी दुनिया में मशहूर हैं। त्रेतायुग से जारी बाबा गोरखनाथ को हर वर्ष मकर संक्रांति की तिथि पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा की सूत्रधार गोरक्षपीठ ही है।
ढाई घाट मेला
ढाई घाट मेले का आयोजन शाहजहाँपुर जिले मे स्थित गंगा नदी के किनारे बसे मिर्जापुर में ढाईघाट तट पर किया जाता है। ऋंगी ऋषि की तपोभूमि ढाईघाट गंगातट पर लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले के संबंध में बताया जाता है कि ऋषि के शाप के कारण नाक पर सींग निकल आया था। नाक पर निकले सींग से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने गंगा के इसी तट पर घोर तपस्या की थी। तब गंगा मइया की कृपा से उनकी नाक पर निकला सींग ढह गया था। तब से इस गंगातट का नाम ढाईघाट पड़ गया। यही वजह है कि इस पवित्र तीर्थ में माघ मास में हजारों संत, महात्मा, श्रद्धालु कल्पवास कर गंगा स्नान करते हैं।
नैमिषारण्य मेला
यह मेला सीतापुर जिले के नैमिषारण्य नामक स्थान पर लगता है। पुराणों में इसका उल्लेख 88000 ऋषियों की तपःस्थली के रूप में आया है। इस मेले का आरंभ प्रत्येक वर्ष के फाल्गुन मास की प्रतिपदा से, विश्व विख्यात 84 कोसीय परिक्रमा के साथ होता है।
गोला गोकर्णनाथ मेला
प्रत्येक वर्ष सावन में आयोजित होने वाला यह मेला लखीमपुर खीरी जनपद के गोला गोकर्णनाथ नामक स्थान पर लगता है। गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले में दूर दराज से लाखों की संख्या में भक्त, श्रद्वालु, कावडिए गंगाजल की कावंडे लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक कर मत्था टेकते है।
कबीर मेला
कबीर मेले का आयोजन संत कबीर नगर जनपद के मगहर नमक स्थान पर किया जाता है। मगहर को संत कबीर की निर्वाण स्थली के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर यह मेला सबसे पहले 1937 में आयोजित किया गया था। 1987 से इसका आयोजन प्रदेश सरकार करा रही है और मेला अब महोत्सव हो चुका है।
Very Helpful
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