महात्मा गांधी एवं सुभाष चंद्र बोस की वैचारिक भिन्नता | Mahatma Gandhi vs Subhash Chandra Bose

स्वतंत्रता प्राप्ति के तरीके एवं अन्य को लेकर गांधी एवं सुभाष के मध्य मतैयक्ता एवं मत भिन्नता 

Gandhi vs Bose

हम सभी यह तो जानते हैं कि राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी तथा नेताजी सुभाषचंद बोस दो ऐसे नेता हैं जिनका भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में एक अतुलनीय योगदान है। वहीं इनके नामों कि चर्चा करने पर सबसे पहले हमारे दिमाग में ये बात आती है कि गांधी जी जहां स्वतन्त्रता अहिंसा के मार्ग को चुना तो वहीं सुभाष चन्द्र बोस ने एक उग्र विचारधारा का समर्थन किया और यहाँ तक कि महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस एक दूसरे के धुर विरोधी थे। किन्तु यह बात पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।

जब शुरूआत में सुभाषचंद्र बोस गांधीजी से मिले तो गांधीजी और सुभाष चन्द्र बोस एक दूसरे के बहुत बड़े प्रशांसक थे, यहाँ तक कि गांधीजी नेताजी से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन (1938) में उनको अध्यक्ष बनाने की सिफ़ारिश की यह जानते हुए भी कि सुभाष चन्द्र बोस उस समय कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं।

फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि गांधीजी और नेताजी के बीत मतभेद पैदा हो गए। इस बात को हम नीचे विस्तार से पढ़ेगे। 

गांधीजी और सुभाष चन्द्र बोस के मतों में अंतर

महात्मा गांधी एवं सुभाष चंद्र बोस दो प्रसिद्ध व्यक्ति थे, जो अपने राजनीतिक सदाचार और नीतिपरक रुतबे में अत्यधिक धनी थे। दोनों ही भारत माता के सच्चे सपूत थे। 1915 में, दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात्, जल्द ही गांधीजी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्विवाद नेता बन गए। उन्होंने निःशस्त्र, राजनीतिक रूप से अधीन, गूंगे एवं अशिक्षित जनमानस को निडर, अहिंसक, राजनीतिक रूप से जागरूक, पुनरुत्थित नागरिक सेना में परिवर्तित कर दिया।

नेताजी ने सिविल सेवा से त्यागपत्र कब दिया था?

सुभाष चंद्र बोस, जो गांधीजी से 28 वर्ष छोटे थे, ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में अपने अमिट योगदान देने के लिए भारतीय सिविल सेवा (ICS) जैसे सुनहरे भविष्य को त्याग दिया। वर्ष 1920 में उनका चयन आईसीएस में हुआ। जलियांवाला बाग के जघन्य नरसंहार के पश्चात् अप्रैल 1921 में त्यागपत्र देने के पश्चात् वे भारत लौट आए।

सुभाष और गांधीजी के बीच संबंध की शुरुआत 16 जुलाई, 1921 को बॉम्बे में उनके बीच मुलाकात से हुई । सुभाष चंद्र बोस मार्गदर्शन के लिए गांधीजी के पास आए। गांधीजी ने सुभाष के मन में भारत की स्वतंत्रता के लिए धुन को जान लिया और उन्हें देशबंधु चितरंजन दास के पास भेजा। इस प्रकार, चितरंजन दास सुभाष चंद बोस के राजनीतिक गुरू हुए।

सुभाष चंद्र बोस के लिए, गांधी हमेशा भारत के महानतम व्यक्ति रहेंगे। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में गांधीजी को जनता का निर्विवाद एवं अद्वितीय नेता स्वीकार किया। सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी की अविचल राष्ट्रभक्ति, चारित्रिक दृढ़ता, सत्य के प्रति प्रेम इत्यादि की प्रशंसा की । वास्तव में बोस ने गांधीजी के एकल समर्पण, उनकी अदम्य इच्छा और उनके अथक परिश्रम के आगे सिर झुकाया ।

गांधी जी के लिए, सुभाष भारत माता का ऐसा सपूत था, जिसका आत्मसमर्पण एवं आत्मबल, अखण्डता और राष्ट्रहित के प्रति प्रतिबद्धता और समस्त भारतीय जनमानस को एक साथ जोड़े रखने की विलक्षण क्षमता थी।

गांधी एवं बोस दोनों ही पूरी तरह ईमानदारी व्यक्ति थे। वे अंतरराष्ट्रीयतावादी और मानववादी थे वे कार्यप्रणाली में धर्मनिरपेक्ष और दृष्टिकोण में नस्लवाद के विरुद्ध थे। किसी भी परिस्थिति में, उनकी तल्लीनता अपनी मातृभूमि की मुक्ति को लेकर थी। स्वतंत्रता संघर्ष के दोनों ही नेताओं का समस्त जीवन भारतीय स्वतंत्रता को समर्पित था। वास्तव में दोनों की जीवनपर्यन्त तपस्या, अंततः उनके जीवन की आहुति के साथ समाप्त हुई।

उपर्युक्त मतैयक्ता एवं समानता के बावजूद, गांधी एवं सुभाष के बीच स्पष्ट मतभेद थे और राजनीतिक जीवन में दोनों एक-दूसरे के विरोधी थे। युवा नेताजी उग्र राष्ट्रवादी थे और तिलक और अरविंदो की परम्परा में विश्वास रखते थे। दूसरी ओर, गांधीजी एक ऐसे राष्ट्रवादी थे जो अपने गुरू गोपाल कृष्ण गोखले और टैगोर की परम्परा में विश्वास रखते थे।

सुभाष बोस जल्द ही भारत की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के पक्षधर थे, जबकि कांग्रेस कमेटी डोमिनियम स्टेट्स के माध्यम से चरणों में स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहती थी। सुभाष बोस का मानना था कि महात्मा गांधी की अहिंसा की पद्धति से भारत की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकेगी और वो हिंसक प्रतिरोध की वकालत करते थे। अपनी पुस्तक 'इंडियन स्ट्रगल' में, जो 1934 में प्रकाशित हुई, सुभाष चंद्र बोस ने लिखा कि, 'यदि महात्मा गांधी तानाशाह स्टालिन, मुसोलिनी या हिटलर, जॉन बुल की भाषा में बोलते तो उन्हें सुना और समझा जाता और उनके सम्मान में सिर झुकाए जाते' । 

ऐसा सुभाष चंद्र बोस ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी की भूमिका को लेकर कहा और वे चाहते थे कि गांधीजी को सम्मेलन में दृढ़ता से अपनी बात रखनी चाहिए थी। हालांकि, सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी के दांडी मार्च और नमक सत्याग्रह (1930) की प्रशंसा की और उन्होंने लिखा किदांडी मार्च की घटना उतनी ही ऐतिहासिक महत्व की थी, जितनी नेपालियन की पेरिस मार्च की घटना थी" । उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं को सफलतापूर्वक शामिल करने के लिए उनकी प्रशंसा कि।

 

1938 में हरिपुरा में आयोजित कांग्रेस का 51वां अधिवेशन

1937 में गांधीजी ने महसूस किया कि सुभाष चन्द्र बोस की शक्ति और प्रतिभा की अब और अधिक उपेक्षा नही की जानी चाहिए और उन्होंने नेताजी को 1938 में हरिपुरा में आयोजित कांग्रेस के 51वें अधिवेशन में अध्यक्ष चुना, जबकि वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य भी नहीं थे। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, बोस और गांधी के बीच यह गठबंधन देश और कांग्रेस दोनों के लिए सही नहीं रहा। सुभाष ने न केवल गांधीजी के प्रसिद्ध चरखे की निंदा की, अपितु आधुनिकृत भारत का आह्वान किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को सशस्त्र संघर्ष करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। 

सुभाष चंद्र बोस ने 1939 के कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष पद के चुनाव में किसे हराया था?

कांग्रेस में अध्यक्ष ज्यादातर निर्विरोध चुने जाते रहे थे लेकिन जब भी चुनाव हुए तब बहुत चर्चा होती थी।वर्ष 1939 में मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित त्रिपुरी गांव में कांग्रेस का अधिवेशन होना था। महात्मा गांधी चाहते थे कि अबुल कलाम आजाद त्रिपुरी अधिवेशन की अध्यक्षता करें। मौलाना आजाद के पीछे हटने के बाद महात्मा गांधी ने आंध्र प्रदेश से आने वाले पट्टाभि सीतारमैया का नाम तय किया। वर्ष 1939 में अध्यक्ष पद के लिए पट्टाभि सीतारमैया और सुभाष चन्द्र बोस का मुकाबला बहुचर्चित रहा। इस बार अध्यक्ष पद के लिए पहली बार चुनाव हुआ। गांधीजी और दूसरे बड़े नेताओं के समर्थन के बावजूद पट्टाभि को बोस के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी थी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पक्ष में 1580 वोट पड़े जबकि सीतारमैया को 1377 वोट। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि पट्टाभि सीतारमैया की हार 'उनसे ज्यादा मेरी हार' है। 

फॉरवर्ड ब्लॉक क्यों बना?

त्रिपुरी अधिवेशन के अगले ही महीने अप्रैल 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने न सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष पद से बल्कि पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। 3 मई 1939 को उन्होंने कलकत्ता की एक रैली में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना का ऐलान किया और इस तरह उनकी राह कांग्रेस से अलग हो गई।

सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कब घोषित किया?

सुभाष चंद्र बोस ने 20 जून, 1940 को महात्मा गांधी से बात की और उन पर दबाव डाला कि उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की खराब स्थिति का फायदा उठाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन का आह्वान करना चाहिए और यह एक सुअवसर है। गांधीजी उनकी बात से सहमत नहीं हुए। 2 अक्टूबर, 1948 को गांधीजी के जन्म दिवस पर बैंकॉक से अपने प्रसारण में उन्होंने गांधीजी की प्रशंसा की और अपनी श्रद्धा प्रकट की और कहा कि, 'भारत के प्रति महात्मा गांधी द्वारा दी गई सेवाएं एवं बलिदान अद्वितीय और अतुलनीय है, जिसके लिए उनका नाम हमारे राष्ट्रीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। इसी रेडियो प्रसारण के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता घोषित किया।

सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी द्वारा कौन सा उपनाम दिया गया था?

यहां तक कि गांधीजी सुभाष बोस के स्वतंत्रता प्राप्ति के तरीके से भिन्न होते हुए भी, उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के देश की स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयासों की सराहना की। एक मौके पर गांधीजी ने सुभाष को लिखा कि 'देश के प्रति आपका प्रेम और आजादी की प्राप्ति के लिए दृढ़ निश्चय अदम्य एवं विलक्षण है। आपकी सजगता पारदर्शी है। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ के मौके पर गांधीजी ने सुभाष बोस को 'देशभक्तों का देशभक्त' कहा।

इस प्रकार गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस ने उनके सम्मुख सभी समस्याओं पर विचार-विमर्श किया। दोनों ने ईमानदारीपूर्वक अपने मतभेदों को स्वीकार किया। उनका आपसी संबंध सच्चाई, पारदर्शिता, बलिदान एवं पीड़ा पर आधारित था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि, अंत तक दोनों की एक दूसरे के प्रति गहरी संवेदना एवं सम्मान था।

 

 

हमें उम्मीद है कि उपर्युक्त पाठ पढ़ने के पश्चात आप महात्मा गांधीजी और सुभाष चन्द्र बोस मे मध्य परस्पर राजनैतिक सम्बन्धों को समझ गए होंगे। इसके साथ ही आपको निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी मिल गए होंगे- 

  • सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कब घोषित किया?
  • सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को क्या कहा  था?
  • महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस में क्या अंतर है?
  • सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा?
  • महात्मा गांधी का नारा क्या है?
  • भारत को आजादी किसने दी है?
  • भारत छोड़ो शब्द किसने गढ़ा था?
  • गांधी को हीरो क्यों माना जाता था?
  • गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस में क्या अंतर है?
  • सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा था?
  • गांधीजी के विरोध के बावजूद सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष कब चुना गया था?
  • सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी द्वारा कौन सा उपनाम दिया गया  था?
  • सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में किसे हराया  था?
  • गांधीजी ने स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को क्या कहा था?
  • सुभाष चंद्र बोस के विचार महात्मा गांधी से कैसे भिन्न थे?
  • सुभाष चंद्र बोस ने हमारे देश के लिए क्या किया था?
  • नेताजी ने सिविल सर्विस से त्यागपत्र क्यों दिया था?
  • नेताजी ने सिविल सेवा से त्यागपत्र कब दिया था?
  • सुभाष चंद्र के गुरु कौन थे?
  • फारवर्ड ब्लाक के संस्थापक कौन हैं?
  • नेता जी ने नौकरी क्यों नहीं की?
  • सुभाष चंद्र बोस कितने पढ़े लिखे थे?
  • दिल्ली चलो का नारा कब और किसने दिया?
  • फॉरवर्ड ब्लॉक क्यों बना?
  • ब्लॉक के उद्देश्य क्या हैं?


अगर आपके किसी प्रश्न का उत्तर नही मिल पाया है तो आप नीचे दिए गए कॉमेंट बॉक्स के माध्यम से अपना प्रश्न पूछ सकते है।
इसके साथ ही यदि आपको यह पाठ जानकारीपूर्ण एवं रोचक लगा हो तो आप इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर कीजिये क्योकि एक प्रचलित कहावत है "ज्ञान बांटने से बढ़ता है।"



Current Affairs के लिए यहाँ पर क्लिक करें।

CDP Most Important 100 MCQs [Part-1]

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post